दीप दीप्ति

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Wednesday 6 May 2015

सीरियल की लत

आजकल की नारियों की कैसी बन गयी आदत सभी जरुरी काम छोड़कर लगी है सीरियल देखने की लत उस वक्त कोई खाना माँगे तो बड़ा गुस्सा आता है बच्चा गर रोने लगे तो बेचारा वह पीट जाता है सास-बहू-शौतन के झगड़े और पति का प्यार देखकर नायिका के आँसू इन्हें होता कष्ट आपार नायिका के चरित्र को न उतारती अपने जीवन में क्या करनी चाहिए उसे सलाह देती रहती मन में अगर मैं होती इसकी बहू तो इस बुढ़िया को समझाती हर जुर्म का ब्याज के साथ बदला मैं चुकाती सीरियल वालों से निवेदन है न दिखायें अवास्तविकता को सास-बहू का वैर दिखाके न अपमान करें इस रिश्ता को मुझको तो लगता है इसमें बस होता है वक्त बर्वाद वरदान टीवी सीरियल के कारण बन गया है श्राप ~ दीपिका ~

Saturday 18 April 2015

मेरी आकांक्षा

ऐ जिंदगी इतना साथ देना मैं पूरा करुं अरमान
 यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
मेहनत से पिछे न हटे मन को ये बात बता देना
 धैर्य विश्वास कभी न खोये दिल को ये समझा देना
 समाज मुझे दर्पण समझे ऐसी बनाऊं पहचान


 यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
देश को रौशन करुं चाहे खूद ही जलना पड़े
 आगे रहे हमारा परचम चाहे जितना चलना पड़े
 पतितों का बनूं सहारा पथिकों का सोपान
 यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान


ईमानदारी की तिनकों से बनाऊं अपनी एक सुंदर आसियाँ
 चरित्र की पूँजी से धनी कर दूं मैं अपनी वादियाँ
 मातृभूमि को भी मेरे जन्म पर हो अभिमान
 यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान
@दीपिका कुमारी दीप्ति (पटना)

Thursday 16 April 2015

दिल छू ले मंजील

मेरे दिल यूं न टूट के बिखर जा
 माना कि क़ई बार मैंने हार को पाया
 पर ये दिल यूं ना खो हौंसला
 फिर से आगे बढ़ने का जोश जगा जा
 वक्त को भी थाम ले
 हर काम को अंजाम दे
 मिलेगी मंजिल हमें
 जरा धैर्य से तू काम ले
 खुद पे जरा तू कर यकीन
 उम्मीद का दीप न कर मद्धिम
 कदम राह खुद ढूंढ़ लेंगे
 हम पायेंगे मंजिल एक दिन
 तकदीर-भाग्य-नसीब हमें कितने दिन सतायेंगे
 मेहनत की तलवार से सबको कदमों में लायेंगे
 मेरे दिल यूं ना…


हम वंशज हैं कर्मवीर के
 न रोते हैं तकदीर पे
 तूफां भी हमसे डरते हैं
 हम लड़ते हैं हर पीर से
 ये तो ट्रेलर है गम का
 पूरा सीन बाकी है फिलम का
 अभी से तू घबरा गया
 तो क्या होगा जीवन का
 गम के बादल को चीरकर खुशी का सूरज उगायेंगे
 लोग सपनों से ऊँचा उड़ते हैं हम क्या मंजिल भी न पायेंगे
 मेरे दिल यूं न टूट के बिखर जा
 माना कि क़ई बार मैंने हार है पाया
 पर यूं न दिल तू खो हौंसला
 फिर से आगे बढ़ने का जोश जगा जा…

आप दिया मैं बाती (कविता)

गुरु ज्ञान के सागर होते शिष्य धरातल का एक बूँद
 आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ
 मैं एक रिक्त खेत गुरुवर आप नंदनवन के कुंज
 मैं अंधेरी रात गुरुवर आप सूर्यकिरण के पूँज
 मंजील का सोपान दिखा दें मैं भूला भटका राही
 जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती।


भगवान से पहले करुंगी गुरुवर आपको नमन
 गुरुदक्षिणा में अंगूठा क्या कर दूंगी जीवन अर्पण
 ऐसी शिक्षा दें हमें बनूं समाज का दर्पण
 दीप बनके ये वत्स आपका उज्जवल करे अपना वतन
 राही का सोपान बनूं दीन-दुखियों का साथी
 जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती।


माता-पिता भी गुरु के रुप हैं देते हमेशा अच्छे ज्ञान
 गुरु के बिना इस जग में कोई नहीं बना महान
 गुरु नहीं होते दुनिया में तो धरती होती सुनशान
 बच्चों के उज्जवल भविष्य का गुरु के हाथ ही है लगाम
 ऐसा मुझे बनायें मुझपे गर्व करे ये माटी
 जग को रौशन करने वाले आप दिया मैं बाती।
@दीपिका कुमारी दीप्ति

Monday 13 April 2015

कुर्सी की महिमा

मैं हूँ कुर्सी महारानी
 सुनो मेरी कहानी
 हर तरफ हर क्षेत्र में
 बस चलती मेरी मनमानी
मेरे कारण कितनों ने
 खेली खूनों की होली
 अपनों से भी तोड़वा दूँ रिस्ते
 वो चीज हूँ मैं अलबेली
माँ की गोद ज्यादा आनंद
 मेरी गोद में मिलता हरदम
 मुझे पाकर हर मानव
 भूल जाता अपना सब गम
इस यूग में क्या हर यूग में
 हुई मेरी ही चाहत
 श्रीराम गये वन में
 हुआ यूद्ध महाभारत
मेरे लिए तो औरंगजेब ने
 मार दिया अपना सब भाई
 हिटलर ने लाखों को मारा
 कर दी दुनिया से लड़ाई
लक्ष्मी मेरे पैरों में बसती
 सरस्वती का सेवक आता है
 पर मेरे पास आते ही
 दूर्गा रुप ले लेता है
मेरी गोद में बैठकर कितने
 करते हैं मेरा अपमान
 तोड़कर मेरे नियम-कानून
 करते हैं मुझको बदनाम
अर्ज है मुझको चाहने वाले
 रखें मेरी भी इज्जत
 मेरी गोद में बैठकर जरा
 करें मेरी भी हिफाजत
~दीपिका ~

भगवान की वरदान:बेटी

भगवान की वरदान है बेटी रेगिस्तान में गुल
 खिलाती है
 वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
 आती है
 अपने प्रिय खिलौने भी दे देती छोटे भ्राता को
 बचपन से ही काम में सहारा देती माता
 को
 खुद कभी नहीं रुठती हरदम सबको मनाती है
 वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
 आती है
जान से ज्यादा इज्जत को रखती है सम्हाल
 बाबुल की पगड़ी ऊँची करके जाती है ससुराल
 बाबुल पर विश्वास इसे खुद इच्छा नहीं जताती
 है
 वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
 आती है
मायके में ही छोड़ आती है अपनी पहचान और
 परिवार
 बस अपने साथ में ले आती है माता का संस्कार
 खूद दिल में दर्द छुपाके सभी को ये हँसाती है
 वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी
 आती है
फिर भी देखो समाज की कैसी संकीर्ण है सोच
 लक्ष्मी को दहेज़ के युग में समझने लगे हैं बोझ
 धरा पर आने से पहले ही भ्रूण हत्या की जाती
 है
 वह घर स्वर्ग बन जाता है जिस घर में बेटी आती है